भारत की
राज्यव्यवस्था के ऐतिहासिक पृष्टभूमि :-
Ø ब्रिटिशर्स
भारत में १६०० ईस्वी में व्यापर करने के लिए आये थे |
Ø महारानी
एलिज़ाबेथ प्रथम के चार्टर द्वारा भारत में व्यापर करने का विस्तृत अधिकार प्राप्त
थे|
Ø कंपनी
१६०० से १७६५ ईस्वी तक सिर्फ व्यापारिक कार्यों तक ही सिमित थी परन्तु बक्सर की युद्ध और “इलाहाबाद कीसंधि ” १२ अगस्त १७६५ के बाद बंगाल
, बिहार ,उड़िसा के दीवानी ( राजस्वा और दीवानी के अधिकार) प्राप्त कर लिये |
Ø १८५८
के सिपाही विद्रोह के कारण ब्रिटिश ताज (क्राउन) ने भारत के शासन का उत्तराधिकार
अपने हांथो में ले लिया और १५ अगस्त १९४७ तक यह शासन चलता रहा |
Ø स्वतंत्रता
के बाद भारत में एक संविधान की आवश्यकता महसूस हुयी और १९४६ में एक संविधान सभा का
गठन हुआ और २६ जनवरी १९५० को संविधान अस्तित्व में आया | भारत में अंग्रेजो के
शासन को निम्न दो भागो में बाँट सकते हैं –
1.
कंपनी का शासन ( १७७३ -१८५८ )
2.
सम्राट का शासन (१८५८-१९४७ )
भारतीय संविधान के विकास
की ऐतिहासिक पृष्टभूमि ( कंपनी का शासन ) :-
1. १७७३ का विनिमय अधिनियम (regulating act 1773 )
2. १७८१ का बंदोबस्त कानून ( act of settlement 1781 )
3.
१७८४ का पिट्स इंडिया अधिनियम ( Pits India act 1784 )
4.
१७८६ का अधिनियम ( Act of 1786 )
5.
१७९३ का चार्टर अधिनियम (Charter act 1793 )
6.
१८१३ का चार्टर अधिनियम (Charter act 1813 )
7.
१८३३ का चार्टर अधिनियम (Charter act 1833 )
8.
१८५३ का चार्टर अधिनियम (Charter act 1853 )
9.
१८५८ का भारत सरकार अधिनियम (Indian government act 1858)
10.
१८६१ के भारत परिषद् अधिनियम (Indian council act 1861 )
11.
१८९२ के भारत परिषद अधिनियम (Indian council act 1892 )
12.
१९०९ के भारत परिषद अधिनियम (Indian council act 1909 )
13.
१९१९ के भारत परिषद का अधिनियम (Indian council act 1919 )
14.
१९३५ का भारत सरकार अधिनियम (Indian government act 1935)
15.
१९४७ का भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम (Indian independence act 1947)
१७७३
का विनिमय अधिनियम (regulating act 1773 ) :-
Ø ईस्ट
इंडिया कंपनी के द्वारा बंगाल में कुप्रशासन से उपजी परिस्थितियों को नियंत्रित
करने और कंपनी के हांथो से राजनितिक शक्तियां छिनने के लिए ब्रिटिश संसद द्वारा
१७७३ का विनिमय अधिनियम लाया गया |ब्रिटिश संसद द्वारा भारत के सम्बन्ध में उठाया
गया यह पहला कदम था |
Ø ब्रिटिश
संसद द्वारा उठाया गया यह पहला कदम था जिसमे कंपनी के कार्यों को नियमित एवं
नियंत्रित किया गया |
Ø इस
अधिनियम के द्वारा पहली बार कंपनी के प्रशासनिक और राजनितिक कार्यों को मान्यता मिली और इसके द्वारा भारत
में पहली बार केंद्रीय शासन की नीव राखी गयी |
Ø १७७३
के अधिनियम के द्वारा सिर्फ बंगाल के गवर्नर को बंगाल का गवर्नर गनरल कहा गया और
इसकी सहायता के लिए एक चार सदस्यी कार्यकारी
परिषद् का गठन किया गया |
Ø लार्ड
वारेन हेस्टिंग्स बंगाल का पहला गवर्नर गनरल था |
Ø इस अधिनियम
के द्वारा मद्रास और बम्बई के गवर्नरों को बंगाल के गवर्नर गनरल के अधीन कर दिया
गया |इससे पहले बंगाल ,मद्रास और बम्बई के गवर्नर एक दुसरे के लिए उत्तरदायी नही
थे एवं वे सीधे अपने निर्णय लेने की लिए उत्तरदायी थे |
Ø १०००
पौंड अंशधारियों को कोर्ट ऑफ़ डायरेक्टर्स को (२४सदस्यों की गवर्निंग बाड़ी) चुनने का अधिकार दिया गया, जो की पहले ५०० पौंड अंशधारी
करते थे|
Ø कंपनी
के कोर्ट ऑफ़ डायरेकटर्स से कहा गया की वे सभी अब से राजस्व ,दीवानी एवं सैन्य प्रशासन के सम्बन्ध में किये गए सभी
प्रकार के कार्यों से ब्रिटिश सर्कार से अवगत कराएँगे |
Ø कंपनी
के डायरेक्टर्स का कार्यकाल ४ वर्ष कर दी गयी तथा प्रतिवर्ष उसमे से एक चौथाई
सदस्यों के स्थान पर नए सदस्यों के निर्वाचन की पद्धति अपनाई गयी |
Ø बंगाल
में एक प्रशासक मंडल गठित किया गया जिसमे गवर्नर गणरल और ४ पार्षद नियुक्त किये गए
थे-
·
पार्षद नागरिक तथा सैन्य प्रशासन से
सम्बंधित थे |
·
निर्णय बहुमत के आधार पर किया जाता
था |
Ø इनकी
नियुक्ति और हटाने का अधिकार ब्रिटिश सम्राट और कोर्ट ऑफ़ डायरेक्टर्स को था |
Ø इस
प्रशासक मंडल का प्रथम अध्यक्ष लार्ड वारेन हेस्टिंग्स था और ४ पार्षद क्रमशः
क्लैवारिंग ,मांसल ,बरवेल फिलिप फ्रांसिस थे |
Ø इस
अधिनियम के अंतर्गत १७७४ में बंगाल में एक उच्च्तम न्यायलय की स्थापना की गयी
जिसमे मुक्य न्यायधीश के अतिरिक्त तीन अन्य न्यायधीश नियुक्त किये गए | इसके प्रथम न्यायधीश “सर एलिजा एमपी” बने
|कंपनी के सरे कर्मचारी इसके अधीन कर दिए गए और न्यायिक विधियाँ इंगलैंड के ही
अनुसार थी |
Ø कानून
बनाने का अधिकार गवर्नर जनरल व उसकी परिषद् को दे दिया गया किन्तु लागु करने से
पूर्व भारत के सचिव की अनुमति लेना
अनिवार्य था |
Ø कंपनी के कर्मचारियों का वेतन बाढा दिया गया और कंपनी के व्यापारियों के निजी व्यापर पर रोक लगा दिया गया एवं किसी भी तरह के उपहार एवं रिश्वत लेने पर रोक लगा दी गयी |
अगला १७८१ का बंदोबस्त कानून
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