वैदिक काल (1500-500) ईसा पूर्वा

वैदिक काल

सिंधु सभ्यता के पतन के बाद जो नवीन संस्कृति प्रकाश में आयी उसके विषय में हमें सम्पूर्ण जानकारी वेदों से मिलती है। इसलिए इस काल को हम 'वैदिक काल' अथवा वैदिक सभ्यता के नाम से जानते हैं। चूँकि इस संस्कृति के प्रवर्तक आर्य लोग थे इसलिए कभी - कभी आर्य सभ्यता का नाम भी दिया जाता है। यहाँ आर्य शब्द का अर्थ- श्रेष्ठ, उदात्त, अभिजात्य, कुलीन, उत्कृष्ट, स्वतंत्र आदि हैं। यह काल 1500 ई.पू. से 600 ई.पू. तक अस्तित्व में रहा।

आर्यों का आगमन काल:  आर्यो के आगमन के विषय में विद्धानों में मतभेद है। बालगंगाधर तिलक ने इसकी तिथि 6000 ई.पू. निर्धारित की है। मैक्समूलर के अनुसार इनके आगमन की तिथि 1500 ई.पू. है। आर्यो के मूल निवास के सन्दर्भ में सर्वाधिक प्रमाणिक मत आल्पस पर्व के पूर्वी भाग में स्थित यूरेशिया का है। वर्तमान समय में मैक्सूमूलन ने मत स्वीकार्य हैं।

आर्यो के क़बीले:  डॉ. जैकोबी के अनुसार आर्यो ने भारत में कई बार आक्रमण किया और उनकी एक से अधिक शाखाएं भारत में आयी। सबसे महत्त्वपूर्ण कबीला भारत था। इसके शासक वर्ग का नाम त्रित्सु था। संभवतः सृजन और क्रीवी कबीले भी उनसे सम्बद्ध थे। ऋग्वेद में आर्यो के जिन पांच कबीलों का उल्लेख है उनमें- पुरु, यदु, तुर्वश, अनु, द्रुह्म प्रमुख थे। ये पंचयन के नाम से जाने जाते थे। चदु और तुर्वस को दास कहा जाता था। यदु और तुर्वश के विषय में ऐसा माना जाता था कि इन्द्र उन्हे बाद में लाए थे। यह ज्ञात होता है कि सरस्वती दृषद्वती एवं आपया नदी के किनारे भरत कबीले ने अग्नि की पूजा की।

# भारत में आर्यो का आगमन 1500  ई.पू. से कुछ पहले हुआ। भारत में उन्होंने सर्वप्रथम सप्त सैन्धव प्रदेश में बसना प्रारम्भ किया। इस प्रदेश में बहने वाली सात नदियों का ज़िक्र हमें ऋग्वेद से मिलता है। ये हैं सिंधु, सरस्वती, शतुद्रि (सतलुज) विपशा (व्यास), परुष्णी (रावी), वितस्ता (झेलम), अस्किनी (चिनाब) आदि।

#  कुछ अफ़ग़ानिस्तान की नदियों का ज़िक्र भी हमें ऋग्वेदसे मिलता है।  कुभा (काबुल नदी), क्रुभु (कुर्रम), गोमती (गोमल) एवं सुवास्तु (स्वात) आदि। इससे यह पता चलता है कि अफ़ग़ानिस्तान भी उस समय भारत का ही एक अंग था। हिमालय पर्वत का स्पष्ट उल्लेख हुआ है। हिमालय की एक चोटी को मूजदन्त कहा गया है जो सोम के लिए प्रसिद्व थी। इस प्रकार आर्य हिमालय से परिचत थे। आर्यों ने अगले पड़ाव के रूप में कुरूक्षेत्र के निकट के प्रदेशों पर क़ब्ज़ा कर उस क्षेत्र का नाम 'ब्रह्मवर्त' (आर्यावर्त) रखा।
#  ब्रह्मवर्त से आगे बढ़कर आर्यो ने गंगा-यमुना के दोआब क्षेत्र एवं उसके नजदीक के क्षेत्रों पर क़ब्ज़ा कर उस क्षेत्र का नाम ब्रह्मर्षि देश रखा। इसके बाद हिमालय एवं विन्ध्यांचल पर्वतों के बीच के क्षेत्र पर क़ब्ज़ा कर उस क्षेत्र का नाम 'मध्य प्रदेश' रखा। अन्त में बंगाल एवं बिहार के दक्षिण एवं पूर्वी भागों पर क़ब्ज़ा कर समूचे उत्तर भारत पर अधिकार कर लिया, कालान्तर में इस क्षेत्र का नाम 'आर्यावत' रखा गया। मनुस्मृति में सरस्वती और दृषद्वती नदियों के बीच के प्रदेश को ब्रह्मवर्त पुकारा गया। 
# भारतीय इतिहास का वह काल जिसमे वेदों  की रचना हुई उसे वैदिक काल कहते हैं. वैदिक काल को दो भागों मे विभाजित किया गया है.

1- ऋगवैदिक काल (1500-1000 ई०पू०)
2- उत्तर वैदिक काल (1000-600 ई०पू०)

इस काल मे जो लोग मध्य एशिया से भारत आए और आकर यहीं बस गये उन्हे आर्य कहा जाता है. वैदिक सभ्यता का निर्माण आर्यों द्वारा ही किया गया. आर्यों द्वारा विकसित ये सभ्यता ग्रामीण सभ्यता थी और आर्यों की भाषा संस्कृत थी.
# आर्यो की प्रशासनिक इकाई आरोही क्रम मे पाँच भागों मे बनती थी-
  कुल,   ग्राम,   विश,   जन,  राष्ट्र.
# ग्राम के मुखिया ग्रामिणी और विष का प्रधान विश्पति कहलाता था. जन के शासक को राजन कहते थे. राज्याधिकारियों मे पुरोहित और सेनानी प्रमुख थे. इसके अलावा 12 अधिकारी राजा के साथ होते थे जिन्हे रत्नी कहा जाता था. पूरप नाम से दुर्गपति और स्पश गुप्तचर होते थे. वाजपति भूमि का अधिकारी होता था तथा उग्र अपराधियों को पकड़ने वाले अधिकारी होते थे. सभा एवं समिति राजा को सलाह देने वाली संस्था होती थी.
# ऋगवैदिक समाज चार वर्णो मे विभक्त था. वे थे-  ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र.
# आर्यों का समाज पितृ प्रधान था. समाज मे बाल विवाह या परदा प्रथा का प्रचलन नही था. स्त्रियाँ शिक्षा ग्रहण करती थीं. आर्यों का प्रमुख पेय  पदार्थ सोमरस था.
# आर्य मुख्यतः तीन प्रकार के वस्त्रों का उपयोग करते थे.
   वास , अधिवास, उष्ण.
आर्यों के मनोरंजन के मुख्य साधन थे- संगीत, रथदौड़, घुड़दौड़, और ड्यूतक्रीड़ा.
# आर्यों का मुख्य व्यवसाय पशुपालन एवं कृषि था. गाय आर्यों के लिए पूजनीय थी, उसे मारने वाले को मृत्यु दंड भी दिया जा सकता था। आर्यों का पसंदीदा पशु घोड़ा और प्रिय देवता इंद्र थे. आर्यो द्वारा खोजी गयी धातु लोहा थी जिसे श्याम अयस कहा जाता था. तांबे को लोहित अयस कहा जाता था. व्यापारियों को पाणी कहा जाता था. अग्नि को मनुष्य और ईश्वर के बीच मध्यस्तता निभाने वाला देवता माना जाता था. सरस्वती नदी सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण मानी जाती थी.
# उत्तर वैदिक काल मे इंद्र के स्थान पर प्रजापति सर्वाधिक महत्वपूर्ण देवता हो गये. उत्तर वैदिक काल मे राजा के राज्याभिषेक के समय राज सूर्य ‌‌‌यज्ञ किया जाता था. उत्तर वैदिक काल मे वर्ग व्यवसाय के बजाय जन्म पर आधारित हो गये. उत्तर वैदिक काल मे निष्क और शत्मन मुद्रा की इकाइयाँ थी. सिक्को का चलन नही था. उत्तर वैदिक काल मे प्रथम बार कौशाम्बी नगर मे पक्की इंटो का प्रयोग किया गया. गोत्र नमक संस्था का जन्म उत्तर वैदिक काल मे हुआ.

 प्रमुख दर्शन एवं उसके प्रवर्तक

चार्वाकचार्वाक
योगपतंजलि
सांख्यकपिल मुनि
न्यायगौतम
पूर्वमिमांशाजैमिनी
उत्तर मीमांशाबदरायण
वैशेषिककनद या उल्लुक

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